Saturday 20 October 2012



पूरे विश्व में शक्ति कि पूजा की जाती है. देवी की पूजा भी कई रुपों में की जाती है. काली रुप में देवी क पूजा तंत्र सिद्दि के लिये की जाती है. पश्चिम बंगाल में काली पूजा को सबसे अधिक की जाती है. इस स्थान पर सती देह का दाहिने पैर की चार अंगुलियां गिरी थी. इस शक्तिपीठ में महाकाली की भव्य मूर्ति विराजमान है. प्रतिमा में देवी की लम्बी जीभ बाहर निकली हुई है. जादू और तंत्र-मंत्र में आस्था रखने वालों के लिये इस स्थान का महत्व और अधिक बढ जाता है. यहीं कारण है कि बंगाल का काला जादू प्रसिद्ध है. 

काला जादू सिखने वालों की धर्मस्थली | Shrine for Black Magic Learner

कालिका शक्तिपीठ के विषय में यह मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति को काला जादू करना आता है. उस पर कालिका माता की विशेष कृपादृष्टी होती है. इसलिये काला जादू सिखने वाले व्यक्ति यहां पर माता का आशिर्वाद लेने अवश्य आते है. इसके साथ ही यहां पर आकर कपाली, अघोरी और तांत्रिक भी सिद्धियां प्राप्त करते है. और सिद्धियों से संबन्धित साधनाएं करते है.  
माता के सभी 51 शक्तिपिठ किसी धार्मिक स्थल विशेष में स्थित नहीं है. और न ही ये एक साथ स्थित हे. ये सभी शक्तिपीठ भारत के बाहर के देशों में भी स्थित है. यह कहा जाता सकता है कि माता के शक्तिपीठ पूरे एशिया महाद्विप मे फैले हुए है. इनके अलग-अलग स्थानों में होने के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है.  

कालिका शक्तिपीठ की स्थापना | Kalika Shakti Peeth Establishment

माता के शक्तिपीठों की स्थापना से संबधित कथा संक्षेप में कुछ इस प्रकार है. एक बार राजा दक्ष ने स्वयं को सर्वोपरी मानते हुए, भगवान शिव और अपनी पुत्री सती कि अवहेलना करनी प्रारम्भ कर दी. वे अपने से अधिक किसी को महत्व ही नहीं देते थें.  
जब ब्रह्मा जी कि सहमति से देवी सती और भगवान शंकर का विवाह हो गया, और राजा दक्ष को इस विवाह को न चाहते हुए भी स्वीकार करना पडा तो राजा दक्ष किसी न किसी प्रकार भगवान शिव का अनादर करने का अवसर तलाशने लगें. 
एक बार उन्होंने एक यज्ञ करने का विचार बनाया, और भगवान शिव का अपमान करते हुए सभी देवी-देवताओं और सज्जनों को इस यज्ञ में शामिल होने का निमंत्रण दिया. परन्तु भगवान शिव को जानबुझकर इस यज्ञ में नहीं बुलाया. अपने पति का यह अपमान देख कर देवी सती अपने पिता के यहां इसका कारण पूछने गई. राजा दक्ष ने बिना आमंत्रण के आई देवी सती और उसके पति भगवान भोलेनाथ का जी भर कर अपमान किया. 
अपने पिता के द्वार कहे गये अपशब्दों का प्रायश्चित करने के लिये देवी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी. अपनी प्रिया की मृ्त्यु कि सूचना प्राप्त होने पर भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हुए. और यज्ञ के कुण्ड से देवी सती का शव निकाल कर क्रोधवश पृ्थ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने लगे,  शिव के यंहा-वहां जाने पर देवी सती के शव से अंग और आभूषण गिरने लगें, इस प्रकार 51 स्थानों पर देवी के शरीर के अंग और आभूषण गिरें, जिने 51 शक्तिपीठों का नाम दिया गया.  

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