Sunday 21 October 2012

Ma Kali Shakti Peetha Of Kalighat - Kolkata, West Bengal Kalighat Kali Temple Hindu temple dedicated to the Hindu goddess Maa Kali is A. [1] It is one of the 51 Shakti Peethas. Kalighat A Ghat was (Landing STAGE 



) sacred to Kali on the old course of the Hooghly river (Bhāgirathi) in the city of Calcutta. The name Calcutta is said to have been derived from the word Kalighat. The river over a period of time has moved away from the temple. The temple is now on the banks of a small canal called Adi Ganga which connects to the Hoogly. The Adi Ganga was the original course of the river Hoogly (Ganga). Hence the name Adi (original) Ganga
Kalighat is regarded as one of the 51 Shakti Peethas of India, where the various parts of Sati's body are said to have fallen, in the course of Shiva's Rudra Tandava. Kalighat represents the site where the toes of the right foot of Dakshayani or Sati fell. Legend has it that a devotee discovered a luminant ray of light coming from the Bhāgirathi river bed, and upon investigating its source came upon a piece of stone carved in the form of a human toe.
He also found a Svayambhu Lingam of Nakuleshwar Bhairav nearby, and started worshiping Kaali in the midst of a thick jungle.[3]
Kalighat is also associated with the worship offered to Kali by a Dasanami Monk by name Chowranga Giri, and the Chowringee area of Calcutta is said to have been named after him.

Saturday 20 October 2012



पूरे विश्व में शक्ति कि पूजा की जाती है. देवी की पूजा भी कई रुपों में की जाती है. काली रुप में देवी क पूजा तंत्र सिद्दि के लिये की जाती है. पश्चिम बंगाल में काली पूजा को सबसे अधिक की जाती है. इस स्थान पर सती देह का दाहिने पैर की चार अंगुलियां गिरी थी. इस शक्तिपीठ में महाकाली की भव्य मूर्ति विराजमान है. प्रतिमा में देवी की लम्बी जीभ बाहर निकली हुई है. जादू और तंत्र-मंत्र में आस्था रखने वालों के लिये इस स्थान का महत्व और अधिक बढ जाता है. यहीं कारण है कि बंगाल का काला जादू प्रसिद्ध है. 

काला जादू सिखने वालों की धर्मस्थली | Shrine for Black Magic Learner

कालिका शक्तिपीठ के विषय में यह मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति को काला जादू करना आता है. उस पर कालिका माता की विशेष कृपादृष्टी होती है. इसलिये काला जादू सिखने वाले व्यक्ति यहां पर माता का आशिर्वाद लेने अवश्य आते है. इसके साथ ही यहां पर आकर कपाली, अघोरी और तांत्रिक भी सिद्धियां प्राप्त करते है. और सिद्धियों से संबन्धित साधनाएं करते है.  
माता के सभी 51 शक्तिपिठ किसी धार्मिक स्थल विशेष में स्थित नहीं है. और न ही ये एक साथ स्थित हे. ये सभी शक्तिपीठ भारत के बाहर के देशों में भी स्थित है. यह कहा जाता सकता है कि माता के शक्तिपीठ पूरे एशिया महाद्विप मे फैले हुए है. इनके अलग-अलग स्थानों में होने के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है.  

कालिका शक्तिपीठ की स्थापना | Kalika Shakti Peeth Establishment

माता के शक्तिपीठों की स्थापना से संबधित कथा संक्षेप में कुछ इस प्रकार है. एक बार राजा दक्ष ने स्वयं को सर्वोपरी मानते हुए, भगवान शिव और अपनी पुत्री सती कि अवहेलना करनी प्रारम्भ कर दी. वे अपने से अधिक किसी को महत्व ही नहीं देते थें.  
जब ब्रह्मा जी कि सहमति से देवी सती और भगवान शंकर का विवाह हो गया, और राजा दक्ष को इस विवाह को न चाहते हुए भी स्वीकार करना पडा तो राजा दक्ष किसी न किसी प्रकार भगवान शिव का अनादर करने का अवसर तलाशने लगें. 
एक बार उन्होंने एक यज्ञ करने का विचार बनाया, और भगवान शिव का अपमान करते हुए सभी देवी-देवताओं और सज्जनों को इस यज्ञ में शामिल होने का निमंत्रण दिया. परन्तु भगवान शिव को जानबुझकर इस यज्ञ में नहीं बुलाया. अपने पति का यह अपमान देख कर देवी सती अपने पिता के यहां इसका कारण पूछने गई. राजा दक्ष ने बिना आमंत्रण के आई देवी सती और उसके पति भगवान भोलेनाथ का जी भर कर अपमान किया. 
अपने पिता के द्वार कहे गये अपशब्दों का प्रायश्चित करने के लिये देवी अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी. अपनी प्रिया की मृ्त्यु कि सूचना प्राप्त होने पर भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हुए. और यज्ञ के कुण्ड से देवी सती का शव निकाल कर क्रोधवश पृ्थ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने लगे,  शिव के यंहा-वहां जाने पर देवी सती के शव से अंग और आभूषण गिरने लगें, इस प्रकार 51 स्थानों पर देवी के शरीर के अंग और आभूषण गिरें, जिने 51 शक्तिपीठों का नाम दिया गया.  

Thursday 18 October 2012

      JAI MAHAKALI MAA !                                                                                                                              ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ,
शरण्ये त्रियम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !                   
 JAI MAHAKALI MAA !
JAI MAHAKALI MAA !

Monday 15 October 2012

चामुंडा देवी
कांगड़ा
हिमाचल प्रदेश
उत्तर भारत

हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है. बानेर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है. पौराणिक कथाओं
 के अनुसार जब भगवान शंकर माता सती को अपने कंधे पर उठाकर घूम रहे थे, तब इसी स्थान पर माता का चरण गिर पड़ा था और माता यहां शक्तिपीठ रूप में स्थापित हो गई. चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है. भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना श्रेष्ठकर है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारा क्लेश दूर हो जाता है.
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो, देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध कर दिया. माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड -मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात हो जाओगी. मान्यता है कि इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं.                                                                                                                                              
JAI MAHAKALI MAA !                                                                                                                         देवी छमा प्रार्थना :-
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो,
न चाह्वानं ध्यानं तदपि वः न जाने स्तुतिकथा:!
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं,
परं जाने मातस्त्वदनुसरण क्लेशहरनम !!१!!
...विधेरज्ञानेन द्रविनाविराहेनालासताया,
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिराभूत!
तदेतत्क्षन्ताव्यं जननि सकलोद्धारीणि शिवे,
कुपुत्रो जायत व्कचिदापी कुमाता न भवति !!२!!
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला:
परं तेषां मध्ये विरलतर लोsहं तव सूत:!
मदीयोsयं त्याग: समुचितमिदं नो शिवे,
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति !!३!! 
JAI MAHAKALI MAA!                                                                                                                     श्रीदुर्गासप्तश्लोकी
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमहामन्त्रस्य
नारायण ऋषिः । अनुष्टुपादीनि छन्दांसि ।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः ।
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थ पाठे विनियोगः ॥
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥१॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द चित्ता ॥२॥
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥४॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते ॥५॥
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥६॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥७॥               

Friday 12 October 2012

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ,
शरण्ये त्रियम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते !

Tuesday 9 October 2012


* रोगनशेषानपहंसि तुष्टा। रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां। त्वमाश्रिता हृयश्रयतां प्रयान्ति।। 
“ROGAAN SHOSHAAN PAHANSITUSHTARUSHTATU KAAMAAN SAKLAAN BHISHTAAN, TVAAM AASHRITAANAAM 
NA VIPANNARAANAM. TVAAMAASHRITAAHYA SHRAYTAAM PRAYAANTI.”
(Oh Goddess, when you are pleased you remove all ailments and when you are angry you destory everything that a person desires for. However, Those, who come to you for sanctuary never have to confront any casastrophy. Instead, such people secure enough merit to provide shelter to others)

Monday 8 October 2012


श्रीदुर्गासप्तश्लोकी
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमहामन्त्रस्य
नारायण ऋषिः । अनुष्टुपादीनि छन्दांसि ।
श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः ।
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थ पाठे विनियोगः ॥
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥१॥
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द चित्ता ॥२॥
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥३॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥४॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवी नमोऽस्तु ते ॥५॥
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥६॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥७॥

Friday 5 October 2012

It is partly correct to say Kali is a goddess of death but She brings the death of the ego as the illusory self-centered view of reality. Nowhere in the Hindu stories is She seen killing anything but demons nor is She associated specifically with the process of human dying like the Hindu god Yama (who really is the god of death). It is true that both Kali and Shiva are said to inhabit cremation grounds and devotees often go to these places to meditate. This is not to worship
death but rather it is to overcome the I-am-the-body idea by reinforcing the awareness that the body is a temporary condition. Shiva and Kali are said to inhabit these places because it is our attachment to the body that gives rise to the ego. Shiva and Kali grant liberation by removing the illusion of the ego. Thus we are the eternal I AM and not the body. This is underscored by the scene of the cremation grounds.

Of all the forms of Devi, She is the most compassionate because She provides moksha or liberation to Her children. She is the counterpart of Shiva the destroyer. They are the destroyers of unreality. The ego sees Mother Kali and trembles with fear because the ego sees in Her its own eventual demise. A person who is attached to his or her ego will not be receptive to Mother Kali and she will appear in a fearsome form. A mature soul who engages in spiritual practice to remove the illusion of the ego sees Mother Kali as very sweet, affectionate, and overflowing with incomprehensible love for Her children.